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सभी ग्रहों का एक रत्न होता है। शनि ग्रह का रत्न नीलम है, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लू सेफायर’ कहते हैं। ज्योतिष विज्ञान में इसे कुरूंदम समूह का रत्न कहते हैं। इस समूह में लाल रत्न को माणिक तथा दूसरे सभी रत्नों को नीलम कहते हैं। इसलिए नीलम सफेद, हरे, बैंगनी, नीले आदि रंगों में प्राप्त होता है।
रत्नों में सबसे अच्छा ब्लू सेफायर नीले रंग का होता है। जिसका रंग आसमानी, गहरा नीला, चमकीला नीला आदि होता है। नीलम रत्न के गुण नीलम रत्न शनि ग्रह का रत्न कहलाता है।
ऐसा माना जाता है कि मोर के पंख जैसे रंग वाला नीलम सबसे अच्छा माना जाता है। यह बहुत चमकीला और चिकना होता है। इससे आर-पार देखा जा सकता है।
नीलम रत्न को पहनने के लिए कुंडली में निम्न योग होने आवश्यक हैं। नीलम रत्न के फायदे नीलम शनि का रत्न है और अपना असर बहुत तीव्रता से दिखाता है इसलिए नीलम कभी भी बिना ज्योतिषी की सलाह के नहीं पहनना चाहिए। नीलम रत्न को पहनने के लिए कुंडली में निम्न योग होने आवश्यक हैं। मेष, वृष, तुला एवं वृश्चिक लग्न वाले अगर नीलम को धारण करते हैं तो उनका भाग्योदय होता है। चौथे, पांचवे, दसवें और ग्यारवें भाव में शनि हो तो नीलम जरूर पहनना चाहिए। शनि छठें और आठवें भाव के स्वामी के साथ बैठा हो या स्वयं ही छठे और आठवें भाव में हो तो भी नीलम रत्न धारण करना चाहिए। शनि मकर और कुम्भ राशि का स्वामी है। इनमें से दोनों राशियां अगर शुभ भावों में बैठी हों तो नीलम धारण करना चाहिए लेकिन अगर दोनों में से कोई भी राशि अशुभ भाव में हो तो नीलम नहीं पहनना चाहिए। शनि की साढेसाती में नीलम धारण करना लाभ देता है। शनि की दशा अंतरदशा में भी नीलम धारण करना लाभदायक होता है। शनि की सूर्य से युति हो, वह सूर्य की राशि में हो या उससे दृष्ट हो तो भी नीलम पहनना चाहिए। कुंडली में शनि मेष राशि में स्थित हो तो भी नीलम पहनना चाहिए। कुंडली में शनि वक्री, अस्तगत या दुर्बल अथवा नीच का हो तो भी नीलम धारण करके लाभ होता है। जिसकी कुंडली में शनि प्रमुख हो और प्रमुख स्थान में हो उन्हें भी नीलम धारण kare
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CERTIFICATE NO.: VG_NGP90000024
COLOR.. Dark Blue ,
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CUT.. OVEL,
SAME AS INDIAN NAME NEELAM (SHANI)
माणिक एक बहुमूल्य रत्न है जो लगभग सभी व्यक्तियों को आकर्षित करती है। मणिक रत्न जो अंग्रेजी में रूबी (Ruby) के नाम से जाना जाता है, माणिक हिंदू धर्म में एक बहुत प्रतिष्ठित रत्न है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, माणिक सूर्य (Sun) का रत्न है, सूर्य हमारी संस्कृति और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एक पोषणकर्ता, एक महत्वपूर्ण ऊर्जा प्रदाता, सूर्य हमारे ब्रह्मांड की आत्मा है
Benefits of Rudraksha in Hindi: पौराणिक मान्यताएं हैं कि कि शिव के नेत्रों से रुद्राक्ष का उद्भव हुआ और यह हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। कहते हैं रुद्राक्ष जितना छोटा हो, यह उतना ही ज्यादा प्रभावशाली होता है। सफलता, धन-संपत्ति, मान-सम्मान दिलाने में सहायक होता है रुद्राक्ष, लेकिन हर चाहत के लिए अलग-अलग रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। वैसे, रुद्राक्ष संबंधी कुछ नियम भी हैं, जैसे- रुद्राक्ष की जिस माला से आप जाप करते हैं उसे धारण नहीं किया जाना चाहिए। रुद्राक्ष को किसी शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए। इसे अंगूठी में नहीं जड़ाना चाहिए। कहते हैं, जो पूरे नियमों का ध्यान रख श्रद्धापूर्वक रुद्राक्ष को धारण करता है, उनकी सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि जिन घरों में रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। यह भगवान शंकर की प्रिय चीज मानी जाती है।
माणिक एक बहुमूल्य रत्न है जो लगभग सभी व्यक्तियों को आकर्षित करती है। मणिक रत्न जो अंग्रेजी में रूबी (Ruby) के नाम से जाना जाता है, माणिक हिंदू धर्म में एक बहुत प्रतिष्ठित रत्न है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, माणिक सूर्य (Sun) का रत्न है, सूर्य हमारी संस्कृति और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एक पोषणकर्ता, एक महत्वपूर्ण ऊर्जा प्रदाता, सूर्य हमारे ब्रह्मांड की आत्मा है
सभी ग्रहों का एक रत्न होता है। शनि ग्रह का रत्न नीलम है, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लू सेफायर’ कहते हैं। ज्योतिष विज्ञान में इसे कुरूंदम समूह का रत्न कहते हैं। इस समूह में लाल रत्न को माणिक तथा दूसरे सभी रत्नों को नीलम कहते हैं। इसलिए नीलम सफेद, हरे, बैंगनी, नीले आदि रंगों में प्राप्त होता है।
रत्नों में सबसे अच्छा ब्लू सेफायर नीले रंग का होता है। जिसका रंग आसमानी, गहरा नीला, चमकीला नीला आदि होता है। नीलम रत्न के गुण नीलम रत्न शनि ग्रह का रत्न कहलाता है।
ऐसा माना जाता है कि मोर के पंख जैसे रंग वाला नीलम सबसे अच्छा माना जाता है। यह बहुत चमकीला और चिकना होता है। इससे आर-पार देखा जा सकता है।
नीलम रत्न को पहनने के लिए कुंडली में निम्न योग होने आवश्यक हैं। नीलम रत्न के फायदे नीलम शनि का रत्न है और अपना असर बहुत तीव्रता से दिखाता है इसलिए नीलम कभी भी बिना ज्योतिषी की सलाह के नहीं पहनना चाहिए। नीलम रत्न को पहनने के लिए कुंडली में निम्न योग होने आवश्यक हैं। मेष, वृष, तुला एवं वृश्चिक लग्न वाले अगर नीलम को धारण करते हैं तो उनका भाग्योदय होता है। चौथे, पांचवे, दसवें और ग्यारवें भाव में शनि हो तो नीलम जरूर पहनना चाहिए। शनि छठें और आठवें भाव के स्वामी के साथ बैठा हो या स्वयं ही छठे और आठवें भाव में हो तो भी नीलम रत्न धारण करना चाहिए। शनि मकर और कुम्भ राशि का स्वामी है। इनमें से दोनों राशियां अगर शुभ भावों में बैठी हों तो नीलम धारण करना चाहिए लेकिन अगर दोनों में से कोई भी राशि अशुभ भाव में हो तो नीलम नहीं पहनना चाहिए। शनि की साढेसाती में नीलम धारण करना लाभ देता है। शनि की दशा अंतरदशा में भी नीलम धारण करना लाभदायक होता है। शनि की सूर्य से युति हो, वह सूर्य की राशि में हो या उससे दृष्ट हो तो भी नीलम पहनना चाहिए। कुंडली में शनि मेष राशि में स्थित हो तो भी नीलम पहनना चाहिए। कुंडली में शनि वक्री, अस्तगत या दुर्बल अथवा नीच का हो तो भी नीलम धारण करके लाभ होता है। जिसकी कुंडली में शनि प्रमुख हो और प्रमुख स्थान में हो उन्हें भी नीलम धारण kare
Benefits of Rudraksha in Hindi: पौराणिक मान्यताएं हैं कि कि शिव के नेत्रों से रुद्राक्ष का उद्भव हुआ और यह हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। कहते हैं रुद्राक्ष जितना छोटा हो, यह उतना ही ज्यादा प्रभावशाली होता है। सफलता, धन-संपत्ति, मान-सम्मान दिलाने में सहायक होता है रुद्राक्ष, लेकिन हर चाहत के लिए अलग-अलग रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। वैसे, रुद्राक्ष संबंधी कुछ नियम भी हैं, जैसे- रुद्राक्ष की जिस माला से आप जाप करते हैं उसे धारण नहीं किया जाना चाहिए। रुद्राक्ष को किसी शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए। इसे अंगूठी में नहीं जड़ाना चाहिए। कहते हैं, जो पूरे नियमों का ध्यान रख श्रद्धापूर्वक रुद्राक्ष को धारण करता है, उनकी सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि जिन घरों में रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। यह भगवान शंकर की प्रिय चीज मानी जाती है।
Benefits of Rudraksha in Hindi: पौराणिक मान्यताएं हैं कि कि शिव के नेत्रों से रुद्राक्ष का उद्भव हुआ और यह हमारी हर तरह की समस्या को हरने की क्षमता रखता है। कहते हैं रुद्राक्ष जितना छोटा हो, यह उतना ही ज्यादा प्रभावशाली होता है। सफलता, धन-संपत्ति, मान-सम्मान दिलाने में सहायक होता है रुद्राक्ष, लेकिन हर चाहत के लिए अलग-अलग रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। वैसे, रुद्राक्ष संबंधी कुछ नियम भी हैं, जैसे- रुद्राक्ष की जिस माला से आप जाप करते हैं उसे धारण नहीं किया जाना चाहिए। रुद्राक्ष को किसी शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए। इसे अंगूठी में नहीं जड़ाना चाहिए। कहते हैं, जो पूरे नियमों का ध्यान रख श्रद्धापूर्वक रुद्राक्ष को धारण करता है, उनकी सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि जिन घरों में रुद्राक्ष की पूजा होती है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। यह भगवान शंकर की प्रिय चीज मानी जाती है।
पन्ना बुध का रत्न है। बुध ग्रह वाणी, युवा, व्यापार, हाजमा आदि का कारक होता है। बुध ग्रह की दो राशियाॅ होती है मिथुन व कन्या। प्राकृतिक कुण्डली में मिथुन राशि तृतीय भाव में होती है एंव कन्या छठें भाव में पड़ी होती है। पन्ना बहुत ही प्रभावकारी रत्न है।
पन्ना रत्न है फायदेमंद, लेकिन पहनने से पहले जान ले यें बात आईये जानते है कि पन्ना रत्न किसे धारण करना चाहिए और किसे नहीं। पन्ना पहनने के लाभ पन्ना रत्न बुध ग्रह से सम्बन्धित है और बुध का स्मरण शक्ति पर सबसे अधिक प्रभाव रहता है, इसलिए जिन लोगों की स्मरण शक्ति कमजोर हो, उन्हें पन्ना धारण करने लाभ होता है। जो लोग किसी भी प्रकार का व्यापार करते है उनके लिए पहनना अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है। जिन बच्चों का पढ़ाई में मन न लगता हो या फिर जो पढ़ते हो वह शीघ्र ही भूल जाते है, उन्हें चांदी के लाकेट में पन्ने को बनवाकर गले में धारण करवाना चाहिए।
सर्प भय पन्ने को 10 मिनट तक पानी में डाले उसके पश्चात उस पानी की छींटे आंखों में मारने से नेत्र रोगों में आराम मिलता है एंव आंखे स्वस्थ्य रहती है। जिन लोगों को सर्प भय रहता है, उन्हें पन्ना जरूर धारण करना चाहिए। गणित और कामर्स की अध्यापकों को पन्ना पहनने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। यदि बुध धनेश होकर भाग्य भाव में हो तो पन्ना धारण करने से भाग्य पक्ष में वृद्धि होती है एंव धन की प्राप्ति होती है। यदि बुध सप्तमेश होकर दूसरे भाव में बैठा हो तो पन्ना पहनने से स्त्री व यात्रा के जरिये धन लाभ होता है। बुध शुभ स्थान का स्वामी होकर अगर लाभ भाव में बैठा हो तो पन्ना पहनने लाभ होता है। मिथुन तथा कन्या राशि वालों के लिए पन्ना पहनना अत्यन्त शुभ रहता है। पन्ना किसे नहीं धारण करना चाहिए?
पन्ना रत्न बुध ग्रह से सम्बन्धित है। बुध एक शुभ ग्रह है, इसलिए अगर इन पापी भावों 6, 8, 12 का बुध स्वामी हो तो पन्ना पहनने से अचानक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। यदि बुध की महादशा चल रही है और बुध आठवें या 12वें भाव में बैठा है तो पन्ना पहनने से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पन्ने को ओपल व हीरे के साथ नहीं पहनने से नुकसान होता है। पन्ने को मोती के साथ भी धारण नहीं करना चाहिए। स्वास्थ्य में पन्ने का लाभ जिन लोगों का हाजमा खराब रहता हो, उन्हें पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं को पन्ना धारण करने से अधिक लाभ मिलता है। जो लोग दमा रोग से पीड़ित है, उन्हें पन्ना रत्न चांदी की अॅगूठी में बनवाकर कनिष्ठका अॅगुली में धारण करने से रोग में कमी आती है। पन्ना पहनने से पौरूष शक्ति में वृद्धि होती.
धारण करने की विधि- मंगलवार के दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान करके पन्ने को गंगाजल में दूध मिलाकर डाल दें फिर दूसरे दिन बुधवार को स्नान-ध्यान करके ‘‘ऊॅ बुं बुधाय नमः” की कम से कम एक माला का जाप करने के बाद पन्ने को कनिष्ठका उॅगुली में धारण करें। सूर्योदय से लेकर सबुह 10 बजे तक पन्ना धारण कर लें। मंगलवार, बुधवार और गुरूवार को इन तीन दिन तक नानवेज एंव धूम्रपान कदापि न करेें अन्यथा पन्ना पहने से विशेष लाभ नहीं होगा।
माणिक एक बहुमूल्य रत्न है जो लगभग सभी व्यक्तियों को आकर्षित करती है। मणिक रत्न जो अंग्रेजी में रूबी (Ruby) के नाम से जाना जाता है, माणिक हिंदू धर्म में एक बहुत प्रतिष्ठित रत्न है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, माणिक सूर्य (Sun) का रत्न है, सूर्य हमारी संस्कृति और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। एक पोषणकर्ता, एक महत्वपूर्ण ऊर्जा प्रदाता, सूर्य हमारे ब्रह्मांड की आत्मा है
टाइगर आई रत्न
‘ टाइगर रत्न’ सबसे अधिक प्रभावी एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाला रत्न है। इसे टाइगर आई भी कहते हैं। इस रत्न पर टाइगर के समान पीली एवं काली धारियां होने के कारण इसे टाइगर आई रत्न कहते हैं। इसका प्रभाव टाइगर (चीता) के समान होता है। इसे धारण करने से तुरंत लाभ हो जाता है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी के कारण बार-बार व्यापार एवं अन्य कार्यों में असफल होता हो, दुखी जीवन व्यतीत कर रहा हो, उस व्यक्ति को टाइगर स्टोन गजब का आत्मविश्वास प्रदान करता है।
इसे धारण करने से पूर्ण सफलता मिलती है तथा व्यक्ति साहसी एवं पुरुषार्थी बन जाता है। शेर जैसा आत्मबल और साहस भी यह रत्न प्रदान करने में सक्षम है। डरपोक, उदासीन व्यक्तियों के लिए यह स्टोन सही माना गया है।
टाइगर आई रत्न के लाभ
वैदिक ज्योतिष में मोती एक शुभ रत्न माना गया है, यह चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। वे व्यक्ति जिनकी जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, उन्हें मोती अवश्य धारण करना चाहिए। क्योंकि यह चंद्रमा से संबंधित सभी दोषों का निवारण करता है। मोती समुद्र में सीपियों द्वारा बनाया जाता है। इस वजह से अच्छी गुणवत्ता के मोती की उपलब्धता कम होती है।
ये सफेद चमकदार और कई आकार में होते हैं लेकिन गोल मोती ही सबसे अच्छा माना जाता है। प्राचीन काल से ही रत्नों में मोती का बड़ा महत्व है। मोती में कुछ चिकित्सीय गुण भी पाये जाते हैं, विशेषकर एशियाई मूल की मेडिकल व्यवस्था में इसका प्रयोग किया जाता है। मोती में क्रिस्टल के समान आध्यात्मिक गुण भी होते हैं। आभूषण के मामले में मोती बेहद लोकप्रिय है, इसे हार या अंगूठी में डालकर पहना जाता है।
अब यदि हम मोती के प्रकारों की बात करें तो, मूल रूप से मोती दो प्रकार के होते हैं ताजा जल वाले मोती और खारे जल वाले मोती। इसके अलावा मोती कई रंगों जैसे गुलाबी और काले आदि तरह के कलर में उपलब्ध होते हैं। आभूषण का शौक रखने वाले लोगों में काले मोती का हार बेहद लोकप्रिय है।
हर सभ्यता और संस्कृति में आभूषण के मामले में मोती बड़ा ही महत्व रखता है। मोती जिसे अंग्रेजी में पर्ल कहते हैं यह शब्द फ्रेंच से लिया गया है जबकि हिन्दी में यह मोती के रूप में प्रसिद्ध है। महिलाएं इस आकर्षक रत्न को हमेशा हार और अंगूठी में पहनना पसंद करती हैं। मोती धारण करने के कई फायदे हैं, जो इस प्रकार है:
पुखराज, बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। यह पीले रंग का एक बहुत मूल्यवान रत्न है जिसकी कार्य क्षमता कई गुना प्रचलित है। ज्योतिष की मानें तो पुखराज धारण करने से विशेषकर आर्थिक परेशानियां कम हो जाती हैं। वहीं यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति पुखराज धारण करता है उसे आर्थिक लाभ मिलना शुरू हो जाता है।
पुखराज धारण करने के बाद अच्छा स्वास्थ्य, आर्थिक लाभ, लंबी उम्र और मान प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जिन कन्याओं के विवाह में देरी हो रही हो उन्हें पुखराज अवश्य धारण करना चाहिए। जिस दंपति को पुत्र की लालसा हो उन्हें भी पुखराज अवश्य धारण करना चाहिए क्योंकि बृहस्पति पति और पुत्र दोनों कारक होता है, लेकिन इसका ध्यान अवश्य रखा जाए कि किसी भी रत्न को धारण करने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह अवश्य लें।
पुखराज धारण करने की विधि
यदि आप बृहस्पति देव के रत्न, पुखराज को धारण करना चाहते है, तो 3 से 5 कैरेट के पुखराज को स्वर्ण या चांदी की अंगूठी में जड़वाकर किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार को सूर्य उदय होने के बाद इसकी प्राण प्रतिष्ठा करवाकर धारण करें। इसके लिए सबसे पहले अंगुठी को दूध, गंगाजल, शहद और शक्कर के घोल में डाल दें, फिर पांच अगरबत्ती ब्रहस्पतिदेव के नाम जलाएं और प्रार्थना करें कि हे बृहस्पति देव मै आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न पुखराज धारण कर रहा/रहीं हूं, कृपया करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे !
इसके बाद अंगूठी को निकालकर 108 बारी अगरबत्ती के ऊपर से घुमाते हुए ॐ ब्रह्म बृह्स्पतिये नम: का जाप करे तत्पश्चात अंगूठी विष्णु जी के चरणों से स्पर्श कराकर तर्जनी में धारण करे! बृहस्पति के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए उच्च कोटि का सिलोनी पुखराज ही धारण करें, पुखराज धारण करने के 30 दिनों में प्रभाव देना आरम्भ कर देता है और लगभग 4 वर्ष तक पूर्ण प्रभाव देता है और फिर निष्क्रिय हो जाता है ! निष्क्रिय होने के बाद आप पुन: नया पुखराज धारण कर सकते है। अच्छे प्रभाव के लिए पुखराज का रंग हल्का पीला और दाग रहित होना चाहिए, पुखराज में कोई दोष नहीं होना चाहिए अन्यथा शुभ प्रभाओं में कमी आ सकती है।
सुनहला भी हो सकता है पुखराज का विकल्प
अगर किसी व्यक्ति के पास पैसों की समस्या है तो वह सुनहला भी धारण कर सकता है, हालांकि ये पुखराज जैसा असर तो नहीं दिखाएगा लेकिन काफी सारी समस्याओं का निदान करता है। पीतल या तांबे की धातू में सुनहला को जड़वाकर पुखराज जैसी विधि से ही पहनने से यह लगभग पुखराज जैसा काम करता है। माना तो यहां तक जाता है कि अगर जातक को सुनहला सूट करेगा तो कुछ ही दिन में स्वयं ही व्यक्ति की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी तो हो ही जाएगी कि वह असली पुखराज सोने में जड़वाकर पहन सकता है।
वैदिक ज्योतिष में मोती एक शुभ रत्न माना गया है, यह चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। वे व्यक्ति जिनकी जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर है, उन्हें मोती अवश्य धारण करना चाहिए। क्योंकि यह चंद्रमा से संबंधित सभी दोषों का निवारण करता है। मोती समुद्र में सीपियों द्वारा बनाया जाता है। इस वजह से अच्छी गुणवत्ता के मोती की उपलब्धता कम होती है।
ये सफेद चमकदार और कई आकार में होते हैं लेकिन गोल मोती ही सबसे अच्छा माना जाता है। प्राचीन काल से ही रत्नों में मोती का बड़ा महत्व है। मोती में कुछ चिकित्सीय गुण भी पाये जाते हैं, विशेषकर एशियाई मूल की मेडिकल व्यवस्था में इसका प्रयोग किया जाता है। मोती में क्रिस्टल के समान आध्यात्मिक गुण भी होते हैं। आभूषण के मामले में मोती बेहद लोकप्रिय है, इसे हार या अंगूठी में डालकर पहना जाता है।
अब यदि हम मोती के प्रकारों की बात करें तो, मूल रूप से मोती दो प्रकार के होते हैं ताजा जल वाले मोती और खारे जल वाले मोती। इसके अलावा मोती कई रंगों जैसे गुलाबी और काले आदि तरह के कलर में उपलब्ध होते हैं। आभूषण का शौक रखने वाले लोगों में काले मोती का हार बेहद लोकप्रिय है।
हर सभ्यता और संस्कृति में आभूषण के मामले में मोती बड़ा ही महत्व रखता है। मोती जिसे अंग्रेजी में पर्ल कहते हैं यह शब्द फ्रेंच से लिया गया है जबकि हिन्दी में यह मोती के रूप में प्रसिद्ध है। महिलाएं इस आकर्षक रत्न को हमेशा हार और अंगूठी में पहनना पसंद करती हैं। मोती धारण करने के कई फायदे हैं, जो इस प्रकार है:
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